Saturday, May 9, 2009

चूहा और किसान


जब कोई किसान फसल तैयार करता है तो उसे सबसे अधिक परेशानी मुफ्तखोर चूहों से आती है। जब वह बीज डालना शुरू करता है तब ये बहुत सारे बीजों को मिट्टी से निकाल-निकाल कर खा जाते हैं। ये चूहे चुपके से, रात में अपने अपने बिलों से निकलते हैं, चूँकि कायर भी परले दर्जे के होते हैं और बिल्ली और बाज के "छोटे बच्चों" से भी डरते हैं। ये भीड़ में हजारों की संख्या में साथ साथ रह लेतें हैं परन्तु एक मरियल सी बिल्ली के भी गले में घंटी नहीं बाँध सकते। जब किसान की फसल कुछ बड़ी होने लगती है तो ये छोटे पौधों की जड़ों, टहनियों, नई कोंपलों, कलियों को कुतर डालते हैं। जब फसल पकने लगती है तब भी जड़ों को कुतर कर पकी बालियों को खा डालते हैं। किसी तरह से फसल कट कर खलिहान में आ जाए तो वहां भी ढेरियों के नीचे बिल, सुरंग बना कर पहुँच जाते है। अब इनसे बचते-बचाते किसी तरह अनाज घर में पहुँच जाए तो वहां भी कम मुसीबत खड़ी नहीं करते। अनाज ही नहीं, भोजन को भी जूठा करके भाग खड़े होते हैं।
मगर किसान फिर भी प्रति वर्ष नई फसल लगाता ही रहता है। कभी चूहों से परेशान होकर अपना काम बंद करता है क्या ?
दूसरी तरफ़ कमजोर से लगने वाले,निरीह, लिजलिजे से बेचारे केंचुए भी होते हैं जो चुपचाप कड़ी मेहनत करते रहते हैं और गहरी खुदाई करके उपजाऊ मिटटी को नीचे से निकाल- निकालकर किसानों को सहायता पहुँचाते रहते हैं।
साथियों, शिक्षक समाज के बीच संगठन का काम करने वाले लोगों की हालत ठीक एक किसान की तरह होती है। अपनी पाई- पाई बचा कर, धूप और कडाके की ठण्ड में भी, हर मुसीबत का सामना करते हुए किसान फसल लगाते रहते है और फ्री का माल उडाने वाले मुफ्तखोर चूहे किसानों का एहसान मानना तो दूर फसल को नुकसान पहुंचाने की हर सम्भव कोशिश करते ही रहते हैं। ऐसे शिक्षकों की कमी नहीं है जो मुफ्तखोर हैं, परजीवी और लालची, चूहों की मानसिकता वाले, कायर और केवल शिकायत करके रोते रहने वाले ये संगठन का काम नहीं कर सकते उल्टे नुकसान जरूर पहुंचाते रहते हैं। मगर फिर भी किसानों को अपना काम करते रहना होता है। आप सभी एक अच्छे किसान की तरह अपने मिशन में लगे रहें। आपको अधिक से अधिक केंचुओं की सहायता भी मिलेगी। किसानों की फसल तो हर हाल में लगती ही रहेगी चाहे चूहे कितने भी हो जायें।
तनवीर आलम,
मालवीयनगर, नयी दिल्ली