Sunday, November 16, 2008

मुल्ज़िम और मुलाज़िम...

विख्यात काकोरी केस के मुक़दमे में क्रांतिकारियों के खिलाफ पंडित जवाहरलाल नेहरू के सगे साले जगत नारायण मुल्ला सरकारी वकील थे। 'मुल्ला' उनका उपनाम था। बहस के दौरान उनकी जुबान से काकोरी के अभियुक्तों के लिए 'मुल्ज़िम' की बजाय 'मुलाज़िम' शब्द निकल गया। मुल्ज़िम अभियुक्त को कहते हैं और मुलाज़िम नौकर को। एक सरकारी नौकर का क्रांतिकारियों के लिए 'मुलाज़िम' शब्द कहना पंडित रामप्रसाद 'बिस्मिल' को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने भरी अदालत में मुल्ला से कहा-




'मुलाज़िम हमको मत कहिये बड़ा अफ़सोस होता है,
अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ़ लाये हैं।
पलट देते हैं हम मौज़े हवादिस अपनी जुर्रत से
कि हमने आँधियों में भी च़राग अक्सर जलाये हैं
....

उस दिन तमाम साथियों ने वकील साहब के उर्दू ज्ञान का काफ़ी मज़ाक उड़ाया।
(मौजे हवादिस= समंदर में तूफ़ान के कारण उठने वाली ऊँची लहरें)
सौजन्य: रजनी कान्त शुक्ल, नवभारत टाइम्स, 16/04/1996

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